राष्ट्रीय और राज्य के राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन से अक्सर ही जनता ये समझ नहीं पाती कि आखिर उनके राज्य में बिगड़ते हालात के लिए किस पार्टी को जिम्मेदार ठहराया जाए। अभी हाल ही में आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अलग होने को चंद्रबाबू नायडू की एक बड़ी राजनीतिक चाल के रूप में देखा जा रहा है। खबरों की मानें तो आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य की श्रेणी का दर्जा नहीं मिला इसलिए इस गठबंधन को तोड़ दिया। हालांकि, केंद्र में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने हाल ही में जो बयान दिया वो तो कोई और ही कहानी बयां करती है।
टीडीपी-बीजेपी के गठबंधन के टूटने के पीछे की वजह शायद पोलावरम परियोजना से जुडी है। पोलावरम एक सिंचाई परियोजना है जो पिछले 75 वर्षों से राजनीति के लिए एक मुद्दा रहा है। इस परियोजना के विकास में समस्या तब उभरी जब इसे एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया, इस निर्णय को ओडिशा सरकार ने चुनौती दी थी। ओडिशा सरकार के मुताबिक पोलावरम परियोजना कई ग्रामीण क्षेत्रों को प्रभावित करेगी। कुल मिलाकर इस परियोजना से ओडिशा के लगभग सात जिले प्रभावित होंगे।
जैसा की हमने पहले बताया था, क्षेत्रीय राजनीति एक अलग ही खेल खेल रही है। ओडिशा की क्षेत्रीय पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) ने पोलावरम परियोजना जो स्थानीय आबादी को प्रभावित करेगी, उसकी अनुमति देने पर बीजेपी की केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। इस परियोजना को लेकर डर है कि इससे आदिवासी विस्थापन के लिए मजबूर होंगे साथ ही जंगल और कृषि भूमि जलमग्न हो जाएगी। इसी डर को देखते हुए हाल ही में परियोजना के खिलाफ लोगों ने दक्षिण ओडिशा में बंद का ऐलान किया गया था। बीजेडी ने आरोप लगाया कि अपनी संधि और ओडिशा के लोगों के प्रति उदासीन रवैये की वजह से बीजेपी ने टीडीपी से किनारा कर लिया।
हाल ही में अपने कोटिया ग्राम पंचायत के दौरे के दौरान धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा था कि, टीडीपी के साथ भाजपा के टूटने का एक महत्वपूर्ण कारण पोलावरम था। उन्होंने अपनी बात दोहराते हुए कहा कि, रही बात इस गांव कि तो ये गांव ओडिशा का अभिन्न अंग था और हमेशा रहेगा। उनके इस स्पष्ट बयान ने अब सत्तारूढ़ बीजेडी को कटघरे में खड़ा कर दिया है। केन्द्रीय मंत्री ने इसे बीजेडी की एक चाल बताई है जो अपनी खामियों को छुपाने के लिए केंद्र सरकार पर दोष मढ़ रही हैं।
धर्मेंद्र प्रधान ने कोटिया ग्राम पंचायत के लोगों को आश्वासन दिया कि वह क्षेत्र में तेजी से विकास के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को एक रिपोर्ट सौंपेंगे ताकि वो इस मामले में हस्तक्षेप करें। केंद्रीय मंत्री के इस कदम ने एक अलग ही स्थिति पैदा कर दी जिसके बाद बीजेडी के पास बीजेपी का विरोध करने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं रह जाता। जैसे ही इस मामले के बारे में लोगों को पता चला, लोगों में उम्मीद की लहर दौड़ गयी उन्हें लगता है कि अब बीजेपी के हस्तक्षेप से ओडिशा और आंध्र प्रदेश दोनों को ही फायदा होगा।
मीडिया में प्रमुखता से दिखाई गयी खबरों के बजाय इस बयान ने टीडीपी-बीजेपी के टूटने के पीछे की असली वजहों पर प्रकाश डाला है। वहीं, दूसरी तरफ ओडिशा के लोगों ने भी ये महसूस किया होगा कि राज्य सरकार का केंद्र की बीजेपी सरकार पर ओडिशा की उपेक्षा करने और उसे दरकिनार करने के जो आरोप लगा रही है वो गलत हैं। अब देखना ये होगा कि केंद्र सरकार ओडिशा के इन जिलों के उत्थान के लिए क्या कदम उठाती है। सत्तारूढ़ बीजेडी के लिए ये जरुर कठिन समय साबित होगा जब उसे राज्य में अपनी स्थिति और केंद्र सरकार पर आरोप मढ़ने के लिए जवाब देना पड़ेगा।
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